Thursday 31 December 2015

वात्सल्य वारिधि राष्ट्रगौरव आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज - लेख ज्योतिर्विद महावीर कुमार सोनी


   

परम पूज्य वात्सल्य वारिधि, राष्ट्रगौरव आचार्य श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज भारत की धरा पर एक ऐसे सूर्य के रूप में सम्पूर्ण देश में प्रकाश फैला रहे हैं जैसे चतुर्थ काल के समय अत्यंत कठिनाई पूर्वक संयम धारण कर हजारों की संख्या में मुनिवर अन्धकार दूर करने हेतु अपना प्रकाश फैलाया करते करते थे. उस समय ऐसे साधुओं की संख्या कभी हजारों में और कभी सैंकड़ों में हुआ करती थी किन्तु काल दोष का प्रभाव कहें कि वर्तमान में ऐसी चर्या का पालन करने वाले गिने चुने मुनिसंघ ही विद्यमान हैं जिनमें आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ससंघ भारत में शिखर चोटी पर है. जैन मुनि में 28 मूलगुण आवश्यक माने गए हैं, आत्मकल्याण ही इनका लक्ष्य होता है, जिस कारण सदैव आत्मा में विचरण इनका मूल स्वभाव रहता है . 

    परम पूज्य आचार्य श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज का गृहस्थ अवस्था का नाम यशवंत कुमार था . श्री यशवंत कुमार का जन्म मध्य प्रदेश के खरगोन जिले के सनावद ग्राम में हुआ .श्रीमती मनोरमा देवी एवं पिता श्री कमल चाँद पंचोलिया के जीवन में इस पुत्र रत्न का आगमन भादों सुदी ७ संवत २००६ दिनांक १८ सितम्बर सन १९५० को हुआ. आपने बी.ए. तक लौकिक शिक्षा ग्रहण की, सांसारिक कार्यों में आपका मन नहीं लगता था. संयोगवश परम पूज्य ज्ञानमती माताजी का सनावद में चातुर्मास हुआ जिसमे आपने अपने वैराग्य सम्बन्धी विचारों   को और अधिक दृड़तर बनाया. आपने आचार्य श्री विमल सागर ji महाराज से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण किया है, १८ वर्ष की अवस्था में आचार्य श्री धर्म सागर ji महाराज  से आपने मुनि दीक्षा ग्रहण की, यह दिन फाल्गुन सुदी ८ संवत २५२५ के रूप में विख्यात हुआ है, जब श्री शांतिवीर  नगर, श्री महावीर जी में मुनि दीक्षा लेकर आपको मुनि श्री वर्धमान सागर नाम मिला. चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज की परम्परा के पंचम पट्टादीश होने का आपको गौरव प्राप्त है, इस पंचम काल में कठोर तपश्चर्या धारी मुनि परम्परा को पुनः aajस्थापित करने का जिन आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज को गौरव हासिल हुआ है, उसी परम्परा के पंचम पट्टादीश के रूप निर्दोष चर्या का पालन करते हुए पूरे देश में धर्म की गंगा बहाने का पुण्य मिलना निश्चित इस जन्म के अलावा पूर्व जन्म की साधनाओ का ही सुफल है. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जब बहुत अल्प संख्या में  मुनि संघ या मुनिगण रह गए हैं जिनके बारे में कहीं कोई टीका टिप्पणी नहीं होती हो, उनमें सबसे ऊपर शिखर पर आचार्य श्री वर्धमान सागर jजी का नाम लिया जाता है, जिनके बारे में कहीं भी विपरीतता के रूप में कोई मामूली टीका टिप्पणी तक नहीं हो रही हो, आचार्य श्री वर्धमान सागर jjiजी अत्यंत सरल स्वभावी होकर महान क्षमा मूर्ति शिखर पुरुष हैं, वर्तमान वातावरण में चल रही सभी विसंगताओं एवं विपरीतताओं से बहुत दूर हैं, उनकी निर्दोष आहार चर्या से लेकर सभी धार्मिक किर्याओं में आप aajaaआज भी चतुर्थ काल के मुनियों के दर्शन का दिग्दर्शन कर सकते हैं.   

चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांति सागर jजी महाराज की परम्परा में चतुर्थ पट्टाचार्य  श्री अजित सागर जी महाराज ने आपको इस परम्परा में पंचम पट्टाचार्य के रूप में आचार्य घोषित किया था, आचार्य श्री अजित सागर jiमहाराज ने अपनी समाधि से पूर्व सन १९९० में एक लिखित आदेश द्वारा उक्त घोषणा की थी. तदुपरांत उक्त आदेश अनुसार उदयपुर (राजस्थान) में पारसोला नामक स्थान पर अपार जन समूह के बीच आपका आचार्य शान्तिसागर ji महाराज की परम्परा के पंचम पट्टाचार्य पद पर पदारोहण कराया गया. उस समय से aajआज तक निर्विवाद रूप से आचार्य श्री शान्तिसागर jiजी महाराज की निर्दोष आचार्य परम्परा का पालन व् निर्वहन कर रहे हैं. आपका वात्सल्य देखकर भक्तजन नर्मीभूत हो जाते हैं, आपकी संघ व्यवस्था देखकर मुनि परम्परा पर गौरव होता है. पूर्णिमा के चंद्रमा के समान ओज धारण किए हुए आपका मुखमंडल एवं सदैव दिखाई देने वाली प्रसन्नता ऐसी होती है कि इच्छा रहती है कि अपलक उसे देखते ही रहें. आचार्य श्री का स्पष्ट मत रहता है कि जहाँ जैसी परम्परा है, वैसी ही पूजा पद्दति से कार्य हो, इसको लेकर विवाद उचित नहीं. आचार्य श्री की  कथनी और करनी में सदैव एकता दिखाई देती है, क्षमामूर्ति हैं, अपने प्रति कुपित भाव रखने वालों के प्रति भी क्रोध भाव नहीं रखते हैं. उनकी सदैव भावना रहती है कि जितात्मा बनो, हितात्मा बनो, जितेन्द्रिय बनो और आत्मकल्याण करो. guruआपमें विशेष गुरुguruभक्ति समाई हुई है, गुरुनिष्ठा एवं guru गुरुभक्ति के रूप में आपकी आचार्य पदारोहण दिवस पर कही गई ये पंक्तियाँ सदैव स्मरण की जाती रही  है  चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शान्तिसागर jiमहाराज के इस शताब्दी में प्रवर्तित चारित्र साम्राज्य को हम संघ रूपी वज्रसंघ की मदद से संभाल सकेंगे. हम तो गुरुजनों से इस अभुदय की आकाशा करते हैं कि आपकी कृपा प्रसाद से परमपूज्य आचार्य श्री अजित सागर jजी महाराज ने आचार्य पद का जो गुरुतर भार सौंपा है, इस कार्य को सम्पन्न करने का सामर्थ्य प्राप्त हो.आचार्य श्री वर्धमान सागर ji की दृष्टि में चारित्र के पुन: निर्माण के लिए सूर्य के उदगम जैसे उद्भूत आचार्य श्री शान्तिसागर ji महाराज आदर्श महापुरुष हैं. आप मुनि दीक्षा के बाद से आचार्य बनते हुए निरंतर निर्दोष रत्नत्रय का पालन करते हुए पूरे देश में धर्म की गंगा बहाते हुए लोगों को आत्म कल्याण के मार्ग पर आगे बढाते आ रहे हैं, सन्मार्ग की तरफ लगाते आ रहे हैं. किशनगढ, जिला अजमेर  (राजस्थान) में गत वर्ष २०१४ में अत्यंत उल्लासपूर्ण वातावरण में आपका आचार्य रजतकीर्ति चारित्र महोत्सव भक्ति भाव पूर्वक मनाया गया, जिसमे देश के कोने कोने से जैन बन्धु सम्मलित हुए, अपार जन समूह के बीच आपके आचार्य पदारोहण की २५वीं वर्षगाँठ  सदैव यादगार रहेगी.

4 comments:

  1. वर्धमान सागर जी महाराज को जिन धर्म प्रभावक उपाधि अजमेर में मिली थी???

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  2. श्री १०८ वर्धमान सागर महाराज की जय जय जय

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  3. Mere vandniya guruvar ka muquabla nahin ha, apke bare me kuch bolna suraj ko deepak dikhane jasa ha, Aap sadev dharam ki pataka fahrate rahenge Or apka asirwaad sada bana rahe, guruvar ke charnon me koti koti namoste

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  4. आचार्य श्रीजी के श्री चरणों में भावसहित नमोस्तु🙏। आचार्यश्री जबसे मुझे ज्ञात हुआ कि आपके श्रीचरण श्रीमहावीरजी की ओर अग्रसर हैं। वर्षान्त में महामसतका अभिषेक होने का, तभी से मैं आपके संज्ञान में कुछ तथ्य रखना चाहता हूं। संत श्री सन् २०१८ में मैं श्रीमहावीरजी में प्रमुख संचालन प्रबंधक पद पर कार्यरत था। मेरी धर्मसम्मत एक प्रमुख टिप्पणी के चलते मुझ से त्यागपत्र देने को बाध्य किया गया ओर उसके पश्चात् मुझ पर घोर प्रताड़नाओं से आघात पहुंचाया गया जिसका दंश मैं जैन श्रावक ओर मेरा परिवार निरंतर झेलता आ रहा है निर्बाध रूप से।
    मेरी टिप्पणी यह थी की श्रीजी की मुर्ति झरने लगी है, जिसके चलते गत अनेकों वर्षों से श्रीजी का नहवन शांतिधारा बाधित है। यहां तक किसी भी श्रावकों को श्रीचरण को स्पर्श करने की भी मनाही है। श्रीमुर्ति जी का पद्मासन में है उसका दाहिना घुटना उखड़ना लगा है। मेरा कहना था कि अब इस मुर्ति संरक्षित किया जाये ओर श्री जी की कोई अन्य भव्य मुर्ति विराजमान करा दी जाए। ताकि वर्तमान में प्रतिष्ठित प्रतिमा जी को जैन धर्म की अतुल्य निधि के रूप में संजोया जाए। यह विषय मैंने पुरी कार्यकारिणी के सम्मुख रखा था। मुझे कहा गया कि क्या मुझे ज्ञात है क्षेत्र कि व्यवस्था में प्रतिवर्ष उन्नीस करोड़ का बजट है। अगर प्रतिमा नहीं होगी तो कौन श्रावक दुरदुर से आएगा दर्शन हेतु एवं श्रेत्र में कार्यरत साढ़े चार सौ कर्मचारियों ओर अधिकारीयों का क्या होगा। ध्यान देने योग्य बात है कि इस विशाल संख्या में जैन मात्र बीस ही हैं। शेष अजैन हैं।
    आचार्य श्री आपकी धर्मविवेचना के सम्मुख मैं नतमस्तक हूं। मैंने तो अपनी नियति निश्चित कर ली है बड़े दुःख के साथ अपना प्राणोउत्तसरग करने से पूर्व मैं इस जैन धर्म को भी छोड़ने जा रहा हूं। ताकि मैं खुलकर देश समाज को कह सकुंगा क्यों धर्मांतरण करना पड़ा है। नमोस्तु भगवंते 🙏😟🙏।

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