Saturday 11 February 2017

आचार्य श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज

आध्यात्मिक शिखर पुरुष राष्ट्र गौरव आचार्य श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज के आदर्श एवं चतुर्थकालीन मुनिचर्या पर आधारित आध्यात्मिक दिशा दर्शन को समाहित किए हुए हिंदी पाक्षिक समाचार पत्र गठजोड़ के विशेष अंक हेतु आपके लेख, सन्देश, समाचार एवं फोटो आदि प्रकाशनार्थ सादर आमंत्रित हैं | आपके द्वारा प्रेषित की जाने वाली सामग्री निम्न ई - मेल पर भिजवाने का कष्ट करें| अधिक जानकारी के लिए नीचे दिए गए मोबाइल नंबर पर सम्पर्क किया जा सकता है.नीचे दी गए नंबर को आप अपने द्वारा संचालित व्हाट्स एप्प ग्रुप्स में भी शामिल कर सकते हैं.
- ज्योतिर्विद महावीर कुमार सोनी, संयोजक, समग्र जैन महासभा
E- mail : gathjodnews@gmail.com
- मोबाइल नंबर 09782560245





Friday 29 July 2016

आध्यात्मिक शिखर पुरुष राष्ट्र गौरव आचार्य श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज पर केन्द्रित पुस्तक का होगा प्रकाशन


आध्यात्मिक शिखर पुरुष राष्ट्र गौरव आचार्य श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज के आदर्श एवं

चतुर्थकालीन मुनिचर्या पर आधारित आध्यात्मिक दिशा दर्शन को समाहित किए हुए एक भव्य पुस्तक



जयपुर। चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री 108 शान्तिसागर जी महाराज की अक्षुण्ण परम्परा के ध्वजवाहक पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी के महान् जीवन चरित्र पर केन्द्रित भव्य चित्रों को संजोते हुए धार्मिक ग्रन्थ का प्रकाशन करने का निर्णय यहाँ लोकप्रिय हिंदी समाचार पत्र "गठजोड़ प्रकाशन" ने लिया है।

सोशल मीडिया के क्षेत्र में कार्यक्रमों के प्रसारण में अभूतपूर्व नेटवर्क हासिल कर चुके "गठजोड़ परिवार" द्वारा यह प्रकाशन किया जावेगा। राजस्थान राज्य अधिकारी कर्मचारी संयुक्त महासंघ एवं राज्य कर्मचारी संघ (युवा) का नेतृत्व करते हुए "जल ही जीवन है - जल बचाओ महाअभियान", "शुद्ध जल, शुद्ध पर्यावरण एवं सुरक्षित वातावरण हो पहला मानवाधिकार" "मतदाता जागरूकता अभियान" जैसे अन्य कई लोकप्रिय अभियानों के सफल नेतृत्वकर्ता संचालक रह चुके ज्योतिर्विद् महावीर कुमार सोनी जो "सरकारी तंत्र" पत्रिका के प्रकाशक एवं प्रधान संपादक भी हैं, इसके प्रकाशन की कमान संभालेंगे। इस प्रकाशन का एक मुख्य उद्देश्य यह भी होगा कि पंचम काल जैसी विषम परिस्थितियों में आज भी चतुर्थ काल जैसी मुनि चर्या का पालन करना सम्भव है, जिसका सही एवं साक्षात दर्शन किया जा सकता है परम पूज्य आचार्य वर्धमान सागर जी महाराज ससंघ के दर्शन लाभ करके, जिनको कलयुग के महावीर कहें तो भी अतिश्योक्ति नहीं होगी, जो कि इस परम मुनि धर्म को आगम निर्देशित रूप में ही आगे बढ़ाने के सर्वत्र प्रेरणा स्त्रोत बने हुए हैं।

इस प्रकाशन को अति भव्य बनाने के लिए सभी लोगों से, प्रमुख रूप से आचार्य श्री को नजदीकी से जानने वाले विद्वान लोगों, संतों, धार्मिक संस्थाओं आदि से लेख, संस्मरण, सन्देश, चित्र आदि प्रकाशनार्थ आमन्त्रित किए जावेंगे।

उल्लेखनीय है कि इस पुस्तक के संपादक ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुविद् महावीर कुमार सोनी प्रथम पट्टाचार्य आचार्य श्री 108 वीर सागर जी महाराज की प्रथम दीक्षित आर्यिका 105 श्री वीरमती माताजी के गृहस्थ अवस्था के भतीजे हैं, बचपन में माताजी के द्वारा धार्मिक संस्कारों को दृढ़ किए हुए धर्म परायण व्यक्ति हैं, गणिनी आर्यिका श्री 105 सुपार्श्वमती माताजी के मंगल आशीर्वाद से उनके मंगल सानिध्य में ज्योतिष शिरोमणि के रूप में सम्मानित ज्योतिष शास्त्र के धनी लोकप्रिय ज्योतिर्विद् भी हैं।

विद्वजनों से निवेदन

विद्वजनों से विनम्र अनुरोध है कि कृपया उक्त सन्दर्भ में पूज्य आचार्य भगवन श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज पर अपने आलेख, संस्मरण, सन्देश, फोटोज, अमूल्य सुझाव आदि निम्न पते पते पर या हमारी नीचे अंकित ई-मेल आई.डी. पर भिजवाने की कृपा करें।
gathjodnews@gmail.com
mahavirkrsoni@gmail.com

ज्योतिर्विद महावीर कुमार सोनी
1356, गोधा भवन, पीतलियों का रास्ता,
जौहरी बाज़ार, जयपुर - 3 मो. 09782560245



Tuesday 26 July 2016

सिद्धवर कूट पर हुई आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी महाराज के चातुर्मास की स्थापना , मनाई गई गुरु पूर्णिमा तथा वीर शासन जयंती

सिद्धक्षेत्र सिद्धवर कूट
भारत वसुन्धरा की ह्रदय स्थली पर विराजमान मध्य प्रदेश प्रांत, जो अपने अंदर सताधिक तीर्थ क्षेत्र,अतिशय क्षेत्र और सिद्ध क्षेत्रों का पुण्य संजोये है, उसके पश्चिम में स्थित निमाड़ जहां धर्म की ब्यार हर समय बहती है और 
जिसे वर्तमान के वर्द्धमान आचार्य श्री वर्धमान सागर जी को जन्म देने का गौरव प्राप्त हुवा है, ऐसे निमाड़ प्रांत को इस वर्ष आचार्य श्री शान्ति सागर जी महाराज की अक्षुण्ण परम्परा के पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी महाराज ससंघ के निमाड़ में प्रथम तथा 48वें वर्षायोग सम्पन्न कराने का गौरव प्राप्त हो रहा है।  
निमाड़ की इसी पावन भूमि पर 
स्थित है अति मनोहारी सिद्धक्षेत्र सिद्धवर कूट, जिसे मानों देवताओं ने सिद्ध पद के पथिकों की साधना स्थली बनाने हेतु स्वयं अपने हाथों से ही बसाया हो और इसीलिए इसका नाम उन्होंने रखा "सिद्धवर कूट"। जिसकी सुरम्यता रमणीयता और वैभव को देखकर लगता है कि इस भूमि से मोक्ष पधारे 2 चक्रवर्ती के वैभव और 10 कामदेव के सौंदर्य का कुछ अंश इस भूमि ने अपने अंदर में धारण कर लिया हो तथा साथ ही साथ साढ़े तीन करोड़ मुनियों की मोक्ष यात्रा के गमन के दौरान की गई तपस्या के प्रभाव से इसका कण कण ऊर्जावान हो गया हो। एक तरफ पहली शताब्दी के सन 11 की आदिनाथ भगवान् की मनोहारी प्रतिमा तो दूसरी तरफ चमत्कारों से परिपूर्ण भगवान् महावीर स्वामी की प्रतिमायें और इनके साथ भगवान् संभवनाथ, शान्तिनाथ, नेमिनाथ के भव्य जिनालय और उनमें विराजमान साधर्मी भक्तों की आश पूरी करने वाले यक्ष एवं क्षेत्रपाल देव और इसी के साथ 36 मुनि आर्यिकाओं सहित क्षेत्र पर विराजमान आचार्य श्री, मानो संपूर्ण दृश्य को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि तीर्थंकर प्रभु का साक्षात् समवशरण ही आया हो।
ऐसे मनोहारी क्षेत्र को अपनी पद रज से पवित्र करने वाले पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधि 108 आचार्य श्री वर्धमान सागर जी का निमाड़ के प्रांत में प्रथम वर्षायोग सम्पन्न कराने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है।

चातुर्मास स्थापना

18 जुलाई को स्थापना समारोह के पूर्व प्रातः काल सिद्धों के गुणों के स्मरण नमन हेतु चल सिद्धचक्र महामंडल विधान के 500 अर्घ समर्पण किया गए। तत्पश्चात् स्थापना कार्यक्रम का प्रारंभ दोपहर के लगभग 3 बजे से हुवा। निवास स्थल से रवाना होते समय मंद मंद चलती पवन और उसके साथ इंद्रों के द्वारा किया जा रहा जलाभिषेक ध्वजारोहण के ठीक पहले विराम को प्राप्त हुवा। प.कुमुद जी सोनी के निर्देशन में ध्वजारोहण किया श्रेष्ठी श्री रूप चंद जी कटारिया ने और उनका सहयोग किया बंगलौर से पधारे श्री अशोक जी सेठी ने। तत्पश्चात् गाजे बाजे और लोक नृत्य से सजे जुलुस के साथ आचार्य संघ का सभा मंडप में मंगल पदार्पण हुवा।
कोलकाता, गुवाहाटी, जयपुर, बम्बई, अहमदाबाद, उदयपुर, दिल्ली, सेलम तथा समस्त निमाड़ प्रांत और भारत के अन्य क्षेत्रों  से पधारे भक्तों से खचाखच भरे सभा मंडप में जैसे ही संघ का आगमन हुवा वैसे ही आचार्य श्री की जयजयकारों से आकाश गुंजायमान हो उठा।
चातुर्मास स्थापना सभा का मंगलाचरण किया अपने कोकिल कंठ से संघस्थ ब्र सिद्धा दीदी ने, और आचार्य परंपरा के आचार्यों के चित्र का अनावरण किया जोबनेर, उदयपुर पारसोला से पधारे भक्तों ने और दीप प्रज्वलन किया पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री प्रदीप जी जैन आदि ने। 
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पधारे पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री प्रदीप जी जैन ने आचार्य श्री और समस्त दिगम्बर संतों के प्रति विन्यान्जलि प्रस्तुत करते हुए कहा कि मोर पंख के इस्तेमाल पर लगी रोक साधुओं के आशीर्वाद से ही हटी है। उन्होंने युवा पीढ़ी को माता पिता की सेवा करने की विशेष प्रेरणा दी। क्षेत्र समिति के अध्यक्ष श्री प्रदीप सिंह जी काशलीवाल ने सभी आगंतुकों का स्वागत करते हुए क्षेत्र की नविन योजनाओं पर प्रकाश डाला।
आचार्य श्री के पाद प्रक्षालन का सौभाग्य प्राप्त किया जयपुर के अनन्य भक्त श्रेष्ठी श्री हुलास चंद जी श्रीपाल जी सुरेश जी सबलावत परिवार ने। आचार्य श्री को शास्त्र भेंट करने का और आचार्य श्री की आरती करने का सौभाया प्राप्त किया दिल्ली के श्रीमान रूपचंद जी कटारिया ने।
तत्पश्चात् स्थानीय समिति एवं निमाड़ प्रान्तवासियों द्वारा आचार्य संघ के चरणों में सिद्धवर कूट पर चातुर्मास करने हेतु निवेदन किया गया। इस अवसर पर कृतज्ञता ज्ञापन स्वरुप आचार्य श्री की भव्य पूजन की गई। पूजन के पश्चात् अवसर आया आचार्य श्री के आशीर्वचन का, सिद्धवर कूट पर चातुर्मास स्थापना की स्वीकृति प्रदान करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि संघ का कई समय से इस क्षेत्र पर चातुर्मास का मन था और सिद्धों के इस दरबार के प्रशस्त वातावरण में संघ को साधना का अपूर्व अवसर प्राप्त होगा। और इसी प्रशस्त वातावरण को देखते हुए संघ के दो तपस्वी मुनि श्री नमित सागर जी महाराज एवं श्री प्रभव सागर जी महाराज ने उत्कृष्ट अठाई व्रत को धारण किया है।

अद्भुत दृश्य
जैसे ही आचार्य श्री ने चातुर्मास स्थापना की घोषणा की मानो सिद्धवर कूट स्थित मानव ही नहीं प्रकृति का मन भी नाच उठा। मंद मंद बहती पवन के झंकोरे से पेड़ पौधे नाच उठे और इंद्र देव द्वारा की जा रही फुहारों से धरती महकने लगी। आशीर्वचन के पश्चात् संघ द्वारा चातुर्मास स्थापना हेतु भक्तियों का पाठ किया गया।
और फिर अवसर आया चातुर्मास के कलश स्थापना का जिसका सौभाग्य प्राप्त किया दानवीर श्रेष्ठी किशनगढ़ के अशोक जी पाटनी (rk marbles) परिवार ने। आचार्य श्री की आरती के पश्चात् कलश की स्थापना की गई।

गुरु पूर्णिमा
18 जुलाई को चातुर्मास स्थापना के पश्चात्  19 जुलाई को अवसर था गुरु पूर्णिमा का, गुरुओं के प्रति अनुराग विनय तथा भक्ति का, एक ऐसा दिवस जिस दिन इंद्रभूति को महान गुरु भगवान महावीर स्वामी मिले और हम सबको गौतम स्वामी जैसे महागुरु। प्रातः काल की बेला में उपस्थित भक्तों द्वारा आचार्य श्री के पाद प्रक्षालन किये गये। सौम्य वातावरण में जहां भक्तगण आचार्य गुरु की पद प्रक्षालन करके अपने कर्मों का प्रक्षालन कर रहे थे वहीँ दूसरी तरफ भक्तों पर मन्द मन्द मुस्कान उड़ेलते हुए आचार्य श्री आशीर्वाद प्रदान कर रहे थे।और फिर अति उत्साह के साथ उपस्थित भक्तों द्वारा आचार्य श्री की भव्य पूजन की गई। आहार चर्या एवं सामायिक आदि की क्रिया के पश्चात् आचार्य श्री संघ सहित सभा मंडप में पधारे जहां महा गुरु महा प्रभु सिद्धों की आराधना का सिद्ध चक्र महामंडल का आज अंतिम दिवस था और 1024 अर्घ्य समर्पण करने का अपूर्व अवसर था।
एक तरफ तो उन सिद्ध प्रभु की भक्ति जो सिद्धालय में विराजमान हो चुके थे और दूसरी तरफ उन आचार्य भगवन की भक्ति जो सिद्धालय जाने के पथ पर आरूढ़ थे। अपूर्व दृश्य।सिद्धों की आराधना के पश्चात् आचार्य श्री की पूजन की गई। आचार्य श्री ने सभी को आशीर्वचन प्रदान करते हुए कहा कि जींवन में गुरु होना अत्यंत आवश्यक है तथा आज ही के दिन गौतम स्वामी के द्वारा हमें गुरु की महत्ता का पता चला। आचार्य श्री ने कहा कि आज के समय में समय दान सबसे बड़ा दान है और संघ को सिद्धवर कूट तक लाने में जिन्होंने अपना समय दान किया है वो वास्तव में अनुकंपा के पात्र है , गुरु की संगति से संतोष प्राप्त होता है और उसी से व्यक्ति मोक्ष पथ पर अग्रसर होता है।

वीर शासन जयंती
20 जुलाई को वीर शासन जयंती महोत्सव मनाया गया। आचार्य श्री ने वीर शासन जयंती के अवसर पर आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि वर्तमान शासन नायक भगवान् श्री महावीर स्वामी की वाणी समवशरण में 66 दिन बाद आज ही के दिन खीरी और गौतम स्वामी ने उसे झेला। आज ही के दिन सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन की ओर गमन करना प्रारम्भ करता है तथा वीर शासन जयंती प्रथम बार कोलकाता में 1939 में मनाई गई। सिद्ध चक्र मंडल विधान के हवन के साथ समाप्ति पर आचार्य श्री ने कहा कि जिन्होंने सिद्धों की आराधना की है उन्होंने अपने जीवन में उत्कृष्ट साधना करके कर्मों का उपशम किया है और जल्दी ही वे अपने चारित्र मोहनीय कर्म का भी उपशम करेंगे और उनकी दीक्षा सिद्धक्षेत्र सिद्धवर कूट पर होने की सम्भावना है। सभा के पश्चात् अठाई व्रत को धारण किये दोनों तपस्वी साधुओं का निरंतराय पारणा सम्पन्न हुवा।
राकेश सेठी
कोलकाता
9830255464

आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी महाराज का वर्ष 2016 का चातुर्मास होगा सिद्धवर कूट में


भारत के मध्य में स्थित मध्यप्रदेश के पश्चिम में एक तरफ विंध्य पर्वत और दूसरी तरफ सतपुड़ा की पहाड़ियों के मध्य में बहती है विश्व की प्राचीनतम नदियों में से एक नदी नर्मदा जिसका उद्भव और विकास निमाड़ में ही हुआ।निमाड़ प्रान्त जिसका सांस्कृतिक इतिहास अत्यन्त समृद्ध और गौरवशाली है और जहां धर्म की ब्यार हर समय बहती है।
ऐसे निमाड़ की पावन भूमि जिसे वर्तमान के वर्द्धमान आचार्य श्री वर्धमान सागर जी को जन्म देने का गौरव प्राप्त हुवा है, को इस वर्ष आचार्य श्री शान्ति सागर जी महाराज की अक्षुण्ण परम्परा के पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी महाराज ससंघ के निमाड़ में प्रथम तथा 48वें वर्षायोग सम्पन्न कराने का गौरव प्राप्त होगा।  
   निमाड़ की भूमि को अपनी पद रज से पवित्र करने वाले पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधि 108 आचार्य श्री वर्धमान सागर जी का निमाड़ के अति मनोहारी सिद्धक्षेत्र सिद्धवर कूट पर पहला एवम् अपने संयमित जीवन का 48 वा वर्षायोग 18 जुलाई 2016 को स्थापित होगा।
निमाड़ प्रांत के सनावद में सन 1950 में जन्मे श्री यशवंत कुमार की सन 1969 में महावीरजी अतिशय क्षेत्र पर भोले बाबा के नाम से प्रसिद्ध धर्म शिरोमणि आचार्य श्री धर्म सागर जी महाराज के कर कमलों से मुनि दीक्षा हुई और सन 1990 में चतुर्थ पट्टाधीश आचार्य श्री अजित सागर जी महाराज के उत्तराधिकारी के रूप में पञ्चम पट्टाचार्य नियुक्त हुए।
36 मूलगुणो के धारी आचार्य श्री का 36 साधुओं के विशाल संघ सहित 2 जुलाई 2016 को सिद्धों के दरबार सिद्धवरकूट में मंगल प्रवेश हुआ और 5 एवम् 6 जुलाई को 27 वां आचार्य  पदारोहण दिवस मनाया गया।
संघस्थ बाल ब्रह्मचारिणी सिद्धा दीदी से प्राप्त जानकारी के अनुसार महामना आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज की अक्षुण्ण परम्परा के ध्वजवाहक पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने 23 मुनि 01 ऐलक 24 आर्यिका 12 क्षुल्लक  तथा 09  क्षुल्लिका इस प्रकार कुल 69 दीक्षाये प्रदान कर भव्यों के मोक्ष मार्ग को प्रशस्त किया है। देश भर के श्रावकों पर  वात्सल्य की बौछार करने वाले आचार्य श्री ने भारत के विभिन्न प्रांतों मे 46 पंचकल्याणक प्रतिष्ठायें करवा कर समस्त प्राणी जनों पर अनुकंपा की है। आचार्य श्री के सानिध्य तथा निर्यापकत्व में 41 साधुओ श्रावको की समाधियां सम्पन हुई है ।
निमाड़ के साथ साथ समस्त भारत वर्ष के लिए यह अत्यंत गौरव की बात है कि आचार्य श्री वर्ष 1993 तथा वर्ष 2006 में श्रवणबेलगोला में 12 वर्षीय महामस्तकाभिषेक कार्यक्रम को सान्निध्य प्रदान करने के पश्चात् अब 2018 में होने वाले मस्तकाभिषेक में तीसरी बार ससंध मार्गदर्शन एवम् सानिध्य प्रदान करेंगे।  यहाँ यह भी  उल्लेखनीय है कि आचार्य श्री का  मध्यप्रदेश में वर्ष 2012 में पपौरा जी, 2013 में कुण्डलपुर में चातुर्मास सम्पन्न हो चूका है तथा 2016 में सिद्धवरकूट में वर्षायोग होने जा रहा है।
सिद्धक्षेत्र सिद्धवरकूट कमेटी तथा समस्त निमाड़ मालवा जैन समाज सभी समाज जनो से अनुरोध करती है कि आप अधिक से अधिक संख्या में धार्मिक कार्यक्रम में सम्मलित होकर धर्म लाभ लेवें और अपने पुण्य को वर्द्धमान करें।

Thursday 31 December 2015

वात्सल्य वारिधि राष्ट्रगौरव आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज - लेख ज्योतिर्विद महावीर कुमार सोनी


   

परम पूज्य वात्सल्य वारिधि, राष्ट्रगौरव आचार्य श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज भारत की धरा पर एक ऐसे सूर्य के रूप में सम्पूर्ण देश में प्रकाश फैला रहे हैं जैसे चतुर्थ काल के समय अत्यंत कठिनाई पूर्वक संयम धारण कर हजारों की संख्या में मुनिवर अन्धकार दूर करने हेतु अपना प्रकाश फैलाया करते करते थे. उस समय ऐसे साधुओं की संख्या कभी हजारों में और कभी सैंकड़ों में हुआ करती थी किन्तु काल दोष का प्रभाव कहें कि वर्तमान में ऐसी चर्या का पालन करने वाले गिने चुने मुनिसंघ ही विद्यमान हैं जिनमें आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ससंघ भारत में शिखर चोटी पर है. जैन मुनि में 28 मूलगुण आवश्यक माने गए हैं, आत्मकल्याण ही इनका लक्ष्य होता है, जिस कारण सदैव आत्मा में विचरण इनका मूल स्वभाव रहता है . 

    परम पूज्य आचार्य श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज का गृहस्थ अवस्था का नाम यशवंत कुमार था . श्री यशवंत कुमार का जन्म मध्य प्रदेश के खरगोन जिले के सनावद ग्राम में हुआ .श्रीमती मनोरमा देवी एवं पिता श्री कमल चाँद पंचोलिया के जीवन में इस पुत्र रत्न का आगमन भादों सुदी ७ संवत २००६ दिनांक १८ सितम्बर सन १९५० को हुआ. आपने बी.ए. तक लौकिक शिक्षा ग्रहण की, सांसारिक कार्यों में आपका मन नहीं लगता था. संयोगवश परम पूज्य ज्ञानमती माताजी का सनावद में चातुर्मास हुआ जिसमे आपने अपने वैराग्य सम्बन्धी विचारों   को और अधिक दृड़तर बनाया. आपने आचार्य श्री विमल सागर ji महाराज से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण किया है, १८ वर्ष की अवस्था में आचार्य श्री धर्म सागर ji महाराज  से आपने मुनि दीक्षा ग्रहण की, यह दिन फाल्गुन सुदी ८ संवत २५२५ के रूप में विख्यात हुआ है, जब श्री शांतिवीर  नगर, श्री महावीर जी में मुनि दीक्षा लेकर आपको मुनि श्री वर्धमान सागर नाम मिला. चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज की परम्परा के पंचम पट्टादीश होने का आपको गौरव प्राप्त है, इस पंचम काल में कठोर तपश्चर्या धारी मुनि परम्परा को पुनः aajस्थापित करने का जिन आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज को गौरव हासिल हुआ है, उसी परम्परा के पंचम पट्टादीश के रूप निर्दोष चर्या का पालन करते हुए पूरे देश में धर्म की गंगा बहाने का पुण्य मिलना निश्चित इस जन्म के अलावा पूर्व जन्म की साधनाओ का ही सुफल है. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जब बहुत अल्प संख्या में  मुनि संघ या मुनिगण रह गए हैं जिनके बारे में कहीं कोई टीका टिप्पणी नहीं होती हो, उनमें सबसे ऊपर शिखर पर आचार्य श्री वर्धमान सागर jजी का नाम लिया जाता है, जिनके बारे में कहीं भी विपरीतता के रूप में कोई मामूली टीका टिप्पणी तक नहीं हो रही हो, आचार्य श्री वर्धमान सागर jjiजी अत्यंत सरल स्वभावी होकर महान क्षमा मूर्ति शिखर पुरुष हैं, वर्तमान वातावरण में चल रही सभी विसंगताओं एवं विपरीतताओं से बहुत दूर हैं, उनकी निर्दोष आहार चर्या से लेकर सभी धार्मिक किर्याओं में आप aajaaआज भी चतुर्थ काल के मुनियों के दर्शन का दिग्दर्शन कर सकते हैं.   

चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांति सागर jजी महाराज की परम्परा में चतुर्थ पट्टाचार्य  श्री अजित सागर जी महाराज ने आपको इस परम्परा में पंचम पट्टाचार्य के रूप में आचार्य घोषित किया था, आचार्य श्री अजित सागर jiमहाराज ने अपनी समाधि से पूर्व सन १९९० में एक लिखित आदेश द्वारा उक्त घोषणा की थी. तदुपरांत उक्त आदेश अनुसार उदयपुर (राजस्थान) में पारसोला नामक स्थान पर अपार जन समूह के बीच आपका आचार्य शान्तिसागर ji महाराज की परम्परा के पंचम पट्टाचार्य पद पर पदारोहण कराया गया. उस समय से aajआज तक निर्विवाद रूप से आचार्य श्री शान्तिसागर jiजी महाराज की निर्दोष आचार्य परम्परा का पालन व् निर्वहन कर रहे हैं. आपका वात्सल्य देखकर भक्तजन नर्मीभूत हो जाते हैं, आपकी संघ व्यवस्था देखकर मुनि परम्परा पर गौरव होता है. पूर्णिमा के चंद्रमा के समान ओज धारण किए हुए आपका मुखमंडल एवं सदैव दिखाई देने वाली प्रसन्नता ऐसी होती है कि इच्छा रहती है कि अपलक उसे देखते ही रहें. आचार्य श्री का स्पष्ट मत रहता है कि जहाँ जैसी परम्परा है, वैसी ही पूजा पद्दति से कार्य हो, इसको लेकर विवाद उचित नहीं. आचार्य श्री की  कथनी और करनी में सदैव एकता दिखाई देती है, क्षमामूर्ति हैं, अपने प्रति कुपित भाव रखने वालों के प्रति भी क्रोध भाव नहीं रखते हैं. उनकी सदैव भावना रहती है कि जितात्मा बनो, हितात्मा बनो, जितेन्द्रिय बनो और आत्मकल्याण करो. guruआपमें विशेष गुरुguruभक्ति समाई हुई है, गुरुनिष्ठा एवं guru गुरुभक्ति के रूप में आपकी आचार्य पदारोहण दिवस पर कही गई ये पंक्तियाँ सदैव स्मरण की जाती रही  है  चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शान्तिसागर jiमहाराज के इस शताब्दी में प्रवर्तित चारित्र साम्राज्य को हम संघ रूपी वज्रसंघ की मदद से संभाल सकेंगे. हम तो गुरुजनों से इस अभुदय की आकाशा करते हैं कि आपकी कृपा प्रसाद से परमपूज्य आचार्य श्री अजित सागर jजी महाराज ने आचार्य पद का जो गुरुतर भार सौंपा है, इस कार्य को सम्पन्न करने का सामर्थ्य प्राप्त हो.आचार्य श्री वर्धमान सागर ji की दृष्टि में चारित्र के पुन: निर्माण के लिए सूर्य के उदगम जैसे उद्भूत आचार्य श्री शान्तिसागर ji महाराज आदर्श महापुरुष हैं. आप मुनि दीक्षा के बाद से आचार्य बनते हुए निरंतर निर्दोष रत्नत्रय का पालन करते हुए पूरे देश में धर्म की गंगा बहाते हुए लोगों को आत्म कल्याण के मार्ग पर आगे बढाते आ रहे हैं, सन्मार्ग की तरफ लगाते आ रहे हैं. किशनगढ, जिला अजमेर  (राजस्थान) में गत वर्ष २०१४ में अत्यंत उल्लासपूर्ण वातावरण में आपका आचार्य रजतकीर्ति चारित्र महोत्सव भक्ति भाव पूर्वक मनाया गया, जिसमे देश के कोने कोने से जैन बन्धु सम्मलित हुए, अपार जन समूह के बीच आपके आचार्य पदारोहण की २५वीं वर्षगाँठ  सदैव यादगार रहेगी.