सिद्धक्षेत्र सिद्धवर कूट
भारत वसुन्धरा की ह्रदय स्थली पर विराजमान मध्य प्रदेश प्रांत, जो अपने अंदर सताधिक तीर्थ क्षेत्र,अतिशय क्षेत्र और सिद्ध क्षेत्रों का पुण्य संजोये है, उसके पश्चिम में स्थित निमाड़ जहां धर्म की ब्यार हर समय बहती है और
जिसे वर्तमान के वर्द्धमान आचार्य श्री वर्धमान सागर जी को जन्म देने का गौरव प्राप्त हुवा है, ऐसे निमाड़ प्रांत को इस वर्ष आचार्य श्री शान्ति सागर जी महाराज की अक्षुण्ण परम्परा के पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी महाराज ससंघ के निमाड़ में प्रथम तथा 48वें वर्षायोग सम्पन्न कराने का गौरव प्राप्त हो रहा है।
निमाड़ की इसी पावन भूमि पर
स्थित है अति मनोहारी सिद्धक्षेत्र सिद्धवर कूट, जिसे मानों देवताओं ने सिद्ध पद के पथिकों की साधना स्थली बनाने हेतु स्वयं अपने हाथों से ही बसाया हो और इसीलिए इसका नाम उन्होंने रखा "सिद्धवर कूट"। जिसकी सुरम्यता रमणीयता और वैभव को देखकर लगता है कि इस भूमि से मोक्ष पधारे 2 चक्रवर्ती के वैभव और 10 कामदेव के सौंदर्य का कुछ अंश इस भूमि ने अपने अंदर में धारण कर लिया हो तथा साथ ही साथ साढ़े तीन करोड़ मुनियों की मोक्ष यात्रा के गमन के दौरान की गई तपस्या के प्रभाव से इसका कण कण ऊर्जावान हो गया हो। एक तरफ पहली शताब्दी के सन 11 की आदिनाथ भगवान् की मनोहारी प्रतिमा तो दूसरी तरफ चमत्कारों से परिपूर्ण भगवान् महावीर स्वामी की प्रतिमायें और इनके साथ भगवान् संभवनाथ, शान्तिनाथ, नेमिनाथ के भव्य जिनालय और उनमें विराजमान साधर्मी भक्तों की आश पूरी करने वाले यक्ष एवं क्षेत्रपाल देव और इसी के साथ 36 मुनि आर्यिकाओं सहित क्षेत्र पर विराजमान आचार्य श्री, मानो संपूर्ण दृश्य को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि तीर्थंकर प्रभु का साक्षात् समवशरण ही आया हो।
ऐसे मनोहारी क्षेत्र को अपनी पद रज से पवित्र करने वाले पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधि 108 आचार्य श्री वर्धमान सागर जी का निमाड़ के प्रांत में प्रथम वर्षायोग सम्पन्न कराने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है।
चातुर्मास स्थापना
18 जुलाई को स्थापना समारोह के पूर्व प्रातः काल सिद्धों के गुणों के स्मरण नमन हेतु चल सिद्धचक्र महामंडल विधान के 500 अर्घ समर्पण किया गए। तत्पश्चात् स्थापना कार्यक्रम का प्रारंभ दोपहर के लगभग 3 बजे से हुवा। निवास स्थल से रवाना होते समय मंद मंद चलती पवन और उसके साथ इंद्रों के द्वारा किया जा रहा जलाभिषेक ध्वजारोहण के ठीक पहले विराम को प्राप्त हुवा। प.कुमुद जी सोनी के निर्देशन में ध्वजारोहण किया श्रेष्ठी श्री रूप चंद जी कटारिया ने और उनका सहयोग किया बंगलौर से पधारे श्री अशोक जी सेठी ने। तत्पश्चात् गाजे बाजे और लोक नृत्य से सजे जुलुस के साथ आचार्य संघ का सभा मंडप में मंगल पदार्पण हुवा।
कोलकाता, गुवाहाटी, जयपुर, बम्बई, अहमदाबाद, उदयपुर, दिल्ली, सेलम तथा समस्त निमाड़ प्रांत और भारत के अन्य क्षेत्रों से पधारे भक्तों से खचाखच भरे सभा मंडप में जैसे ही संघ का आगमन हुवा वैसे ही आचार्य श्री की जयजयकारों से आकाश गुंजायमान हो उठा।
चातुर्मास स्थापना सभा का मंगलाचरण किया अपने कोकिल कंठ से संघस्थ ब्र सिद्धा दीदी ने, और आचार्य परंपरा के आचार्यों के चित्र का अनावरण किया जोबनेर, उदयपुर पारसोला से पधारे भक्तों ने और दीप प्रज्वलन किया पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री प्रदीप जी जैन आदि ने।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पधारे पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री प्रदीप जी जैन ने आचार्य श्री और समस्त दिगम्बर संतों के प्रति विन्यान्जलि प्रस्तुत करते हुए कहा कि मोर पंख के इस्तेमाल पर लगी रोक साधुओं के आशीर्वाद से ही हटी है। उन्होंने युवा पीढ़ी को माता पिता की सेवा करने की विशेष प्रेरणा दी। क्षेत्र समिति के अध्यक्ष श्री प्रदीप सिंह जी काशलीवाल ने सभी आगंतुकों का स्वागत करते हुए क्षेत्र की नविन योजनाओं पर प्रकाश डाला।
आचार्य श्री के पाद प्रक्षालन का सौभाग्य प्राप्त किया जयपुर के अनन्य भक्त श्रेष्ठी श्री हुलास चंद जी श्रीपाल जी सुरेश जी सबलावत परिवार ने। आचार्य श्री को शास्त्र भेंट करने का और आचार्य श्री की आरती करने का सौभाया प्राप्त किया दिल्ली के श्रीमान रूपचंद जी कटारिया ने।
तत्पश्चात् स्थानीय समिति एवं निमाड़ प्रान्तवासियों द्वारा आचार्य संघ के चरणों में सिद्धवर कूट पर चातुर्मास करने हेतु निवेदन किया गया। इस अवसर पर कृतज्ञता ज्ञापन स्वरुप आचार्य श्री की भव्य पूजन की गई। पूजन के पश्चात् अवसर आया आचार्य श्री के आशीर्वचन का, सिद्धवर कूट पर चातुर्मास स्थापना की स्वीकृति प्रदान करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि संघ का कई समय से इस क्षेत्र पर चातुर्मास का मन था और सिद्धों के इस दरबार के प्रशस्त वातावरण में संघ को साधना का अपूर्व अवसर प्राप्त होगा। और इसी प्रशस्त वातावरण को देखते हुए संघ के दो तपस्वी मुनि श्री नमित सागर जी महाराज एवं श्री प्रभव सागर जी महाराज ने उत्कृष्ट अठाई व्रत को धारण किया है।
अद्भुत दृश्य
जैसे ही आचार्य श्री ने चातुर्मास स्थापना की घोषणा की मानो सिद्धवर कूट स्थित मानव ही नहीं प्रकृति का मन भी नाच उठा। मंद मंद बहती पवन के झंकोरे से पेड़ पौधे नाच उठे और इंद्र देव द्वारा की जा रही फुहारों से धरती महकने लगी। आशीर्वचन के पश्चात् संघ द्वारा चातुर्मास स्थापना हेतु भक्तियों का पाठ किया गया।
और फिर अवसर आया चातुर्मास के कलश स्थापना का जिसका सौभाग्य प्राप्त किया दानवीर श्रेष्ठी किशनगढ़ के अशोक जी पाटनी (rk marbles) परिवार ने। आचार्य श्री की आरती के पश्चात् कलश की स्थापना की गई।
गुरु पूर्णिमा
18 जुलाई को चातुर्मास स्थापना के पश्चात् 19 जुलाई को अवसर था गुरु पूर्णिमा का, गुरुओं के प्रति अनुराग विनय तथा भक्ति का, एक ऐसा दिवस जिस दिन इंद्रभूति को महान गुरु भगवान महावीर स्वामी मिले और हम सबको गौतम स्वामी जैसे महागुरु। प्रातः काल की बेला में उपस्थित भक्तों द्वारा आचार्य श्री के पाद प्रक्षालन किये गये। सौम्य वातावरण में जहां भक्तगण आचार्य गुरु की पद प्रक्षालन करके अपने कर्मों का प्रक्षालन कर रहे थे वहीँ दूसरी तरफ भक्तों पर मन्द मन्द मुस्कान उड़ेलते हुए आचार्य श्री आशीर्वाद प्रदान कर रहे थे।और फिर अति उत्साह के साथ उपस्थित भक्तों द्वारा आचार्य श्री की भव्य पूजन की गई। आहार चर्या एवं सामायिक आदि की क्रिया के पश्चात् आचार्य श्री संघ सहित सभा मंडप में पधारे जहां महा गुरु महा प्रभु सिद्धों की आराधना का सिद्ध चक्र महामंडल का आज अंतिम दिवस था और 1024 अर्घ्य समर्पण करने का अपूर्व अवसर था।
एक तरफ तो उन सिद्ध प्रभु की भक्ति जो सिद्धालय में विराजमान हो चुके थे और दूसरी तरफ उन आचार्य भगवन की भक्ति जो सिद्धालय जाने के पथ पर आरूढ़ थे। अपूर्व दृश्य।सिद्धों की आराधना के पश्चात् आचार्य श्री की पूजन की गई। आचार्य श्री ने सभी को आशीर्वचन प्रदान करते हुए कहा कि जींवन में गुरु होना अत्यंत आवश्यक है तथा आज ही के दिन गौतम स्वामी के द्वारा हमें गुरु की महत्ता का पता चला। आचार्य श्री ने कहा कि आज के समय में समय दान सबसे बड़ा दान है और संघ को सिद्धवर कूट तक लाने में जिन्होंने अपना समय दान किया है वो वास्तव में अनुकंपा के पात्र है , गुरु की संगति से संतोष प्राप्त होता है और उसी से व्यक्ति मोक्ष पथ पर अग्रसर होता है।
वीर शासन जयंती
20 जुलाई को वीर शासन जयंती महोत्सव मनाया गया। आचार्य श्री ने वीर शासन जयंती के अवसर पर आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि वर्तमान शासन नायक भगवान् श्री महावीर स्वामी की वाणी समवशरण में 66 दिन बाद आज ही के दिन खीरी और गौतम स्वामी ने उसे झेला। आज ही के दिन सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन की ओर गमन करना प्रारम्भ करता है तथा वीर शासन जयंती प्रथम बार कोलकाता में 1939 में मनाई गई। सिद्ध चक्र मंडल विधान के हवन के साथ समाप्ति पर आचार्य श्री ने कहा कि जिन्होंने सिद्धों की आराधना की है उन्होंने अपने जीवन में उत्कृष्ट साधना करके कर्मों का उपशम किया है और जल्दी ही वे अपने चारित्र मोहनीय कर्म का भी उपशम करेंगे और उनकी दीक्षा सिद्धक्षेत्र सिद्धवर कूट पर होने की सम्भावना है। सभा के पश्चात् अठाई व्रत को धारण किये दोनों तपस्वी साधुओं का निरंतराय पारणा सम्पन्न हुवा।
राकेश सेठी
कोलकाता
9830255464